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लोकसभा चुनाव 2024 : हरियाणा के सियाशी गलियारे में फसलों पर एमएसपी की गारंटी बनी बड़ा मुद्दा, सरकार ठोक रही दावा; विपक्ष लगातार कर रहा सवाल

लोकसभा चुनाव 2024 : लोकसभा चुनाव आते ही  राजनीति गलियारे में आरोप प्रतिआरोप होने शुरू हो गये है| ऐसे में एमएसपी का मुद्दा विपक्ष के लिए रामबाण साबित हो रहा है| जिसके लिए किसान लगातार मांग कर रहे हैं| वहीं सरकार इस मुद्दे पर अपना बचाव करती नजर आ रही है| 

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 लोकसभा चुनाव 2024 : हरियाणा के सियाशी गलियारे में फसलों पर एमएसपी की गारंटी बनी बड़ा मुद्दा, सरकार ठोक रही दावा; विपक्ष लगातार कर रहा सवाल 

HARYANA NEWS HUB, (ब्यूरो) : लोकसभा चुनाव से पहले भले ही किसानों का आंदोलन शांत हो गया है, मगर सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदे जाने का कानून न बनाने को किसान संगठन और विपक्ष मुद्दा बना सकता है। हरियाणा सरकार दावा करती है कि वह 14 फसलों को एमएसपी पर खरीदती है, लेकिन किसान संगठन इस दावे को सिरे से नकार देते हैं। किसान संगठन 23 फसलों को एमएसपी कानून (MSP Law) के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं।

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किसान संगठनों के अनुसार गेहूं और धान को छोड़ बाकी सभी फसलों को किसानों को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है। इसके अलावा कभी फसलों की खरीद समय पर शुरू नहीं होती तो कभी किसान एमएसपी पर फसल बेचने के लिए मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल (My Crop My Details Portal) पर रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पाते। इसलिए किसानों को उचित लाभ नहीं मिलता। किसानों की मांग है कि जब तक एमएसपी कानून नहीं बनता तब तक इसका समाधान नहीं निकल सकता। कांग्रेस ने चुनाव की घोषणा से पहले ही एलान कर दिया था कि केंद्र में उनकी सरकार बनते ही एमएसपी कानून लागू कर दिया जाएगा।


हालांकि कांग्रेस ने 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी एमएसपी कानून बनाने का वादा किया था, लेकिन पांच साल सरकार चलाने के बाद भी एमएसपी कानून नहीं बन सका। वहीं, हरियाणा की भाजपा सरकार का कहना है कि किसानों को फसलों का उचित लाभ मिल रहा है। इसलिए वह किसी के बहकावे में नहीं आने वाले। हरियाणा सरकार का दावा है कि वह धान, गेहूं, जौ, सरसों, मक्का, बाजरा, मूंग, मूंगफली, अरहर, उड़द, तिल, चना, सूरजमुखी व कपास को एमएसपी पर खरीदती है।

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पिछले साल हरियाणा सरकार ने बाजरे का एमएसपी 2500 प्रति क्विंटल तय किया था, मगर हैफेड व हरियाणा स्टेट वेयर हाउसिंग ने इससे 2200 रुपये प्रति क्विंटल में खरीदा और बाकी रकम भावांतर योजना के तहत किसानों के खाते में डालने का दावा किया। वहीं, पिछले साल सूरजमूखी को एमएसपी (MSP for Sunflower) पर खरीद के लिए किसान संगठनों ने बड़ा आंदोलन चलाया, मगर सरकार ने सूरजमुखी की फसल एमएसपी पर नहीं खरीदी, बल्कि उसकी भरपाई भावांतर योजना के तहत की गई।

सूरजमुखी का एमएसपी 6400 रुपये प्रति क्विंटल था। बाजार में इसका भाव 4900 रुपये प्रति क्विंटल था। सरकार ने किसानों को एक हजार रुपये भावांतर योजना (Bhavantar Yojana) के तहत दिए। इस हिसाब से किसानों को सूरजमुखी के दाम 5900 रुपये प्रति क्विंटल मिले, जो एमएसपी से 500 रुपये कम था। इसी तरह से नरमा (कपास) की भी एमएसपी पर खरीद नहीं होती।

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पहली बार धान पर दिया गया था एमएसपी-
1960 के दशक में किसानों को अधिक पैदावार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एमएसपी लागू करने की व्यवस्था की गई थी। पहली बार एमएसपी 1964-65 में धान की फसल पर दिया गया था। तब धान का एमएसपी 33.50 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 39 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। गेहूं पर पहली बार एमएसपी 1966-67 में 54 रुपये प्रति क्विंटल दिया गया था। लेकिन आज जब कई खाद्यान्नों की अतिरिक्त पैदावार हो रही है। अनाज गोदामों में सड़ रहा है। ऐसे में एमएसपी की जरूरत पर भी सवाल उठ रहे हैं।

एमएसपी कानून लागू करने में चुनौतियां-
1. आय के सीमित स्रोत (Limited Sources of Income)  होने के कारण सरकार सभी फसलों पर एमएसपी नहीं दे सकती। इसके लिए एक बड़े बजट की जरूरत पड़ेगी।
2. यदि सरकार कानून लागू कर भी दे तो अनाज खरीद कर उसका भंडारण करना मुश्किल होगा। वर्तमान में भी अनाज का बड़ा हिस्सा खराब हो जाता है।
3. जिन फसलों पर एमएसपी लागू है, किसान उन्हीं फसलों को उगाएंगे। इससे भूमि की उर्वरक क्षमता प्रभावित होगी।

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एमएसपी का लाभ तभी, जब सरकारी खरीद हो-
एमएसपी का मतलब यही है कि किसानों को उनकी फसलों का किसी भी परिस्थिति में न्यूनतम दाम मिले। मगर यह इतना आसान नहीं है। किसानों को एमएसपी का लाभ तभी मिल पाता है, जब उसकी फसल को सरकार खरीदे। मगर किसी कारणवश सरकार किसान की फसल नहीं खरीदती तो उसे मजबूरी में औने-पौने दाम पर निजी एजेंसियों को बेचना पड़ता है। इसीलिए किसान एमएसपी कानून की मांग कर रहे हैं। किसान संगठनों का कहना है कि एमएसपी का कानून बनने से किसानों को काफी फायदा पहुंचेगा। कानून बनने से किसानों को सरकारी मंडियों या सरकारी एजेंसियों (Government markets or government agencies) से बाहर भी अपनी फसल को एमएसपी से कम दाम पर बेचने की मजबूरी से मुक्ति मिल जाएगी। आज भी किसान धान व गेहूं को छोड़कर बाकी फसलों का 40-50 फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र को ही बेचता है।


इसलिए नहीं मिलता फसलों का उचित लाभ-
किसानों को फसलों का उचित लाभ क्यों नहीं मिलता, इसे सरसो की खरीद से समझा जा सकता है। हरियाणा सरकार ने बीती 25 मार्च से सरसों की खरीद एमएसपी पर शुरू की है। जबकि किसानों की फसल दस दिन पहले ही पक कर तैयार हो गई थी। फसल खरीद में देरी को देखते हुए किसानों ने अनाज मंडी में ही 4500 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरसों बेच दी। जबकि सरकार ने सरसों का एमएसपी 5650 रुपये प्रति क्विंटल तय कर रखा है।

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इस हिसाब से किसानों को प्रति एकड़ आठ से दस हजार रुपये का नुकसान झेलना पड़ा। वहीं, एमएसपी पर फसल बेचने के लिए किसानों को मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी होता है। पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन (Registration on portal) होने के बाद ही किसानों के मोबाइल पर ओटीपी (OTP on mobile) मिलता है, जिसे दिखाने के बाद मंडी के अंदर फसल ले जाने के लिए किसानों को गेट पास जारी किया जाता है। ऐसे बहुत से किसान हैं, जो अपना रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर नहीं करवा पाते। इस समय रबी की फसल की खरीद चल रही है। इसके लिए 68 फीसदी किसान ही पोर्टल पर पंजीकरण करवा पाए हैं और अब पंजीकरण बंद हो चुका है। ऐसे में बाकी बचे 32 प्रतिशत किसान एमएसपी पर अपनी फसल नहीं बेच पाएंगे। उन्हें निजी क्षेत्र में ही फसल बेचनी पड़ेगी।


पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की बाध्यता खत्म हो और कोई भी एमएसपी से कम पर न खरीदे फसल-
हिसार स्थित हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति केएस कोचर ने बताया कि हरियाणा में सिर्फ गेहूं और धान की फसल ही एमएसपी पर खरीदी जाती है। गेहूं और धान एमएसपी पर इसलिए बिक जाती है, क्योंकि यह राष्ट्र की जरूरत है। दूसरी फसलों कपास, मूंग व आयलशीड्स पर एमएसपी (MSP on oilseeds) लागू तो हो जाता है, लेकिन किसानों को उचित लाभ नहीं मिलता। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत पंजीकरण की है। अब गांव का किसान कैसे अपनी फसल का पंजीकरण करवा पाए।

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इसके लिए उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। जबकि आजकल तो सैटेलाइट इमेजिंग से एक किसान का रकबा आसानी से पता चल जाता है। किसान यह भी नहीं चाहते कि सरकार ही उनकी फसल एमएसपी पर खरीदे। वह तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि फसल का एक न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाए, ताकि कोई भी उस निश्चित रेट से कम पर किसानों की फसल न खरीदे। अब तो कई सारे कारपोरेट घराने (all corporate houses) फसलों को खरीदते हैं। फिर इसमें दिक्कत क्या है। यदि कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। पूर्व वीसी का कहना है कि फसलों के साथ सरकार को दुग्ध, मछली पालन, मशरूम, अंडा और फलों पर भी एमएसपी देना चाहिए।


सरकार का दावा- किसानों के खाते में डाले एमएसपी के 90 हजार करोड़ रुपये-
हरियाणा सरकार ने दावा किया है कि उसने पिछले सात सीजन में एमएसपी पर 14 फसलें खरीदी हैं। इन फसलों की खरीद पर सरकार ने किसानों के खाते में करीब 90 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया है। भावांतर भरपाई के तहत (under compensation) किया गया भुगतान इसके अतिरिक्त है। सिर्फ बाजरा उत्पादक किसानों को भावांतर योजना के तहत 836 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। सरकार ने यह भी दावा किया है कि मेरी फसल-मेरा ब्योरा पोर्टल पर हर सीजन में लगभग 10 लाख किसान अपनी फसल का विवरण उपलब्ध करवाते हैं। इससे सरकार को बाजार हस्तक्षेप में रणनीति बनाने के लिए उपयोगी जानकारी मिलती है।

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किसान संगठन का आरोप - निजी क्षेत्र को लाभ पहुंचा रही सरकार-
भारतीय किसान यूनियन (Indian Farmer's Union) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि एमएसपी को लेकर ही हम संघर्ष कर रहे हैं। यदि सरकार एमएसपी दे रही होती तो किसान आंदोलन क्यों करते। सरकार कहती तो है कि वह एमएसपी दे रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और होती है। सरकार ने सरसों की खरीद तब शुरू की जब 60 फीसदी किसान निजी क्षेत्र में औने-पौने दाम पर फसल बेच चुके थे। इतनी देरी से खरीद शुरू करने की जरूरत क्या है। दरअसल इसके पीछे भी सरकार का ही हाथ है। जितनी देरी से खरीद शुरू होगी, उतना ज्यादा निजी क्षेत्र को फायदा होगा। निजी क्षेत्र के लोग किसानों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनकी फसल को औने-पौने दाम पर खरीदते हैं। इसलिए हमारी मांग है कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाए।


विपक्ष की प्रतिक्रिया-
एमएसपी का मुद्दा हम लोग कई साल से उठा रहे हैं। हरियाणा में किसानों के साथ धोखा हो रहा है। विधानसभा में भी यह मुद्दा उठाते रहे हैं। मगर सरकार अपनी बात के आगे किसी की सुनने के लिए तैयार नहीं होती। मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल (my crop my details portal) भी बंद होने चाहिए। पोर्टल की वजह से किसान काफी परेशान हैं। कांग्रेस ने एलान कर रखा है कि जिस दिन केंद्र में हमारी सरकार बनेगी, उसी दिन एमएसपी का कानून लागू कर देंगे। -भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री हरियाणा।

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सरकार का पक्ष-
हरियाणा का किसान अब समझदार हो गया है। उसे फसलों का उपयुक्त लाभ मिल रहा है। बीते दिनों हुए आंदोलन में हरियाणा का किसान शामिल नहीं हुआ। इससे पता चलता है कि वह संतुष्ट है। हम सबसे ज्यादा फसलों पर एमएसपी दे रहे हैं। फसलों पर मुआवजा भी देश में सबसे ज्यादा देते हैं। विपक्ष को यही बात तो पच नहीं रही। फसलों की खरीद एक निश्चित समय पर ही होती है। पिछले साल भी इसी समय खरीद शुरू हुई थी। फसलों का पंजीकरण इसलिए जरूरी है, ताकि हरियाणा के किसानों को एमएसपी का लाभ मिले। हमारी सरकार में ही फसल खरीद का पैसा सीधे किसानों के खाते में जाता है। बीच में कोई भी बिचौलिया नहीं होता। -कंवरपाल गुर्जर, कृषि मंत्री हरियाणा सरकार।