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चेक बाउंस को लेकर Supreme Court का नोटिस जारी, इतने समय तक नहीं होगी जेल

Supreme Court decision : आप सभी को पता ही होगा आज का जमाना डिजिटल पेमेंट का जमाना है। दरअसल आए दिनों लाखों करोड़ों रुपए की ऑनलाइन ट्रांसक्शन होती है। लेकिन बहुत से लोग है जो बड़ी राशि की ट्रांसक्शन करने के लिए चेक का ही इस्तेमाल करते है। लेकिन कई बार चेक बाउंस हो जाता है। इसके लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी बात कही है। आइए नीचे आर्टिकल में जानते है इस अपडेट के बारे में.

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चेक बाउंस को लेकर Supreme Court का नोटिस जारी, इतने समय तक नहीं होगी जेल

HARYANA NEWS HUB : चेक बाउंस( check bounce ) के बारे आपने सुना तो जरूर होगा. चेक बाउंस का मतलब( meaning of check bounce ) है कि आपने किसी व्यक्ति को 10,000 रुपये का चेक साइन करके दिया. वह व्यक्ति अपने बैंक में गया और वह रकम अपने खाते में डलवाने के लिए चेक लगा दिया. बैंक ने पाया कि जिस व्यक्ति ने चेक दिया है, उसके खाते में 10,000 रुपये हैं ही नहीं. ऐसे में जिसे पैसा मिलना चाहिए था, उसे नहीं मिला और बैंक को अलग से मैनपावर लगानी पड़ी.

 

इस तरह के चेक रिजेक्ट( check rejected ) हो जाने को ही चेक बाउंस( check bounce news ) होना कहा जाता है. तो ध्यान रखें, जब भी चेक काटें तो अपने बैंक अकाउंट( bank account ) में मौजूदा रकम से कम काटें. यदि चेक बाउंस( check bounce update ) हुआ तो उसके लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान है, क्योंकि भारत में चेक बाउंस होने को वित्तीय अपराध ( Financial Criem ) माना गया है. चेक बाउंस का केस परिवादी के परिवाद पर निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट( Negotiable Instruments Act ), 1881 की धारा 138 के अंतर्गत दर्ज करवाया जाता है

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चेक बाउंस के मामले आए दिन सामने आते हैं और अदालतों में इस तरह के केस लगातार बढ़ने लगे हैं. इससे जुड़े ज्यादातर मामलों में राजीनामा नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सज़ा दी जाती है. चेक बाउंस के बहुत कम केस ऐसे होते हैं जिनमे अभियुक्त बरी किए जाते है. इसलिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान हैं?

 

किस धारा के तहत चलता है केस?

 

चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम 2 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है. हालांकि, सामान्यतः अदालत 6 महीने या फिर 1 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाती है. इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने निर्देश भी दिया जाता है. प्रतिकर की यह रकम चेक राशि की दोगुनी हो सकती है.

सजा होने पर कैसे करें अपील?


चूंकि चेक बाउंस का अपराध 7 वर्ष से कम की सज़ा का अपराध है इसलिए इसे जमानती अपराध बनाया गया है. इसके अंतर्गत चलने वाले केस में अंतिम फैसले तक अभियुक्त को जेल नहीं होती है. अभियुक्त के पास अधिकार होते हैं कि वह आखिरी निर्णय तक जेल जाने से बच सकता है. चेक बाउंस केस में अभियुक्त सजा को निलंबित किए जाने के लिए गुहार लगा सकता है. इसके लिए वह ट्रायल कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के अंतर्गत आवेदन पेश कर सकता है.


चूंकि किसी भी जमानती अपराध में अभियुक्त के पास बेल लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सज़ा को निलंबित कर दिया जाता है. वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के तहत सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात :

सुप्रीम कोर्ट (supreme court) की बेंच ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण करने के बाद कहा, ‘‘इसकी धारा 138 के तहत चेक बाउंस (supreme court on cheque bounce) को आपराधिक कृत्य मानने के लिए यह जरूरी है कि बाउंस (supreme court on cheque bounce news) हुआ चेक पेश किए जाते समय एक वैध प्रवर्तनीय ऋण का प्रतिनिधित्व करे.

यदि परिस्थिति में कोई सामग्री परिवर्तन हुआ है जैसे कि राशि में चेक परिपक्वता या नकदीकरण के समय कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, तो धारा 138 के तहत अपराध नहीं बनता है.’’ आम भाषा में कहें तो गारंटी चेक पर लिखी राशि यदि बकाया राशि से अधिक है तो यदि वो चेक बाउंस होता है तो चेक जारी करने वाले पर चेक बाउंस का मुक़दमा नहीं चल सकता.

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कोर्ट (supreme court) ने यह भी कहा, “जब ऋण का आंशिक भुगतान चेक के आहरण के बाद लेकिन चेक को भुनाने से पहले किया जाता है, ऐसे भुगतान को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 56 के तहत चेक पर पृष्ठांकित किया जाना चाहिए. आंशिक भुगतान को रिकॉर्ड किए बिना चेक को नकदीकरण के लिए प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है.

यदि बिना समर्थन वाला चेक प्रस्तुत करने पर बाउंस हो जाता है, तो धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत अपराध को आकर्षित नहीं किया जाएगा क्योंकि चेक नकदीकरण के समय कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.” आदेश के अनुसार यदि आप गारंटी के चेक को बैंक |(bank news) में जमा कराते हैं तो उस चेक के पीछे आपको अनुमोदन करना होगा कि चेक पर लिखी राशि में से आपको आंशिक भुगतान हो चुका है. जारी किया हुआ चेक केवल बकाया राशि के लिये ही मान्य होगा.