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Kaithal : महाभारत के समय का है काली माता मंदिर, जानिए क्या है इसके पीछे का इतिहास, रह जाओगे दंग

Kaithal : बता दें की कैथल में स्थित काली माता का मन्दिर महाभारत काल का माना जाता है| यह मन्दिर कैथल के एतिहासिक सूर्यकुंड डेरे में स्थित है| आइए जानते है इस मन्दिर के पुरे इतिहास के बारे में निचे आर्टिकल में विस्तार से निचे खबर में.. 

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Kaithal : महाभारत के समय का है काली माता मंदिर, जानिए क्या है इसके पीछे का इतिहास, रह जाओगे दंग 

HARYANA NEWS HUB, (ब्यूरो) : कैथल में माता गेट स्थित शहर के ऐतिहासिक सूर्यकुंड डेरे (Historical Suryakund Dera) में स्थित काली माता का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इस डेरे का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा माना जाता है। यह कुरुक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में आता है। मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडव पुत्र युुधिष्ठिर ने कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। इनमें से सबसे बड़ा कुंड माता गेट पर सूर्यकुंड के नाम से स्थापित किया गया था। वहीं, यहां पर स्थित काली माता के मंदिर को बाजीगर समाज की कुलदेवी माना जाता है। इसलिए चैत्र मास की अमावस्या व पहले नवरात्र पर यहां पर भव्य मेला लगता है। पूरा इतिहास जानने के लिए जुड़े रहे खबर में अंत तक...

इस बार सोमवार से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं। इस अवसर पर यहां पर दो दिवसीय मेला आयोजित किया जाएगा। इस मेले के लिए मंदिर प्रशासन की ओर से तैयारी तेज हैं। इनके तहत मंदिर परिसर को भव्य लाइटें (Grand lights to the temple complex) लगाना शुरू कर दी हैं। परिसर के बाहर बाजार भी सज रहे हैं। सूर्यकुंड के साथ यहां पर माता शीतला और माता काली का मंदिर है। भगवान शिव का मंदिर भी यहां है। पूरे मंदिर की दीवारों पर काले-भूरे रंग के ग्रेनाइट पत्थर (Black-brown granite stone) को जड़ा गया है। मंदिर के बाहरी चारदीवारी में भगवान दत्तात्रेय, भगवान लक्ष्मीनारायण, राधाकृष्ण, हिंगलाज माता, मां दुर्गा, माता बगलामुखी, मां अन्नपूर्णा व गेट पर हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित हैं।

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हर साल की तरह लगने वाले इस दो दिवसीय मेले में इस बार 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं (This time more than 50 thousand devotees) के पहुंचने का अनुमान है। ये श्रद्धालु हरियाणा सहित पंजाब, यूपी, राजस्थान और यूपी से भी पहुंचेंगे। बच्चों के झूले इत्यादि भी लगाने शुरू कर दी है। इसके साथ ही मेले में पहुंचने वाले लोगों के अस्थायी शौचालय और स्नानघर भी बनाना शुरू कर दिए गए हैं। मेले की तैयारियों के बीच मंदिर के महंत रमनपुरी (Mahant Ramanpuri) ने भंडारा सहित अन्य सेवा देने वाले पहुंचे सेवादारों से बातचीत की और उन्हें व्यवस्था बनाने के लिए मंदिर प्रशासन से सहयोग की अपील की।

महंत रमनपुरी ने बताया कि डेरा परिसर में स्थित काली माता का मंदिर बाजीगर समाज (Temple Juggler Society) की कुल देवी मंदिर है। इस मेले सबसे अधिक संख्या बाजीगर समाज के लोग ही मां काली की पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार मेले के दोनों दिन जाम की स्थिति से बचने के लिए चीका बाईपास (Chika Bypass) से लेकर सीवन गेट और माता गेट से कमेटी चौक का रूट डायवर्ट किया जाएगा। इसके लिए पुलिस प्रशासन से गुजारिश की गई है। बताया कि मेले में 200 से अधिक सेवादार दो दिन तक सेवा में तैनात रहेंगे।

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यह है मंदिर का इतिहास-
महंत रमनपुरी ने बताया कि डेरे में स्थित काली माता का मंदिर (Kali Mata temple located in the camp) काफी प्राचीन है। इसकी काफी मान्यता है। आजादी से पहले बाजीगर समाज के बुजुर्ग कलवा पीर महाकाली (Elder Kalwa Peer Mahakali) के परम भक्त होते थे। वह लाहौर में रहते थे। सैकड़ों वर्ष पहले की बात है कि एक समय वह मां काली की आराधना कर रहे थे। उस समय जब वे रात के समय सोए तो मां काली ने उन्हें सपने में दर्शन दिए। फिर कहा कि उन्हें सुबह एक बकरा दिखेगा। उस बकरे के साथ चलना।

जहां पर भी यह बकरा जाकर रुक जाए तो वहां पर ही मेरा मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना करना। माता की बताई गई बातों के अनुसार बकरा सूर्यकुंड डेरे (Bakra Suryakund Camp) में आकर रूका। इसके बाद से ही कलवा पीर यहां पर आकर बस गए। इस समय भी कलवा पीर की समाधि बनी है और उनका धुना लगा है। तभी से लेकर बाजीगर समाज की कुल देवी का मंदिर यहां पर ही बन गया।

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आजादी से पहले पाकिस्तान में रहने वाले बाजीगर समाज (Juggler community living in Pakistan) के लोग भी यहां पर नवरात्र में पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते थे। रमनपुरी ने बताया कि बाजीगर समाज में माता काली के मंदिर में माथा टेकने के बाद ही समाज के युवा व युवतियां अपने दांपत्य जीवन की शुरूआत करते हैं।