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Supreme Court : 96 वर्षीय दोषी को रिहा करने के लिए किया समर्थन, 27 साल जेल नें रहना आजीवन कारावास के समान, जानियें वजह ?

Supreme Court Decision : हबीब अहमद खान को 1993 में सिलसिलेवार ट्रेन विस्फोटों के सिलसिले में 1994 में गिरफ्तार किया गया था। 2004 में अजमेर ट्रायल कोर्ट ने 14 अन्य लोगों के साथ उसे आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत दोषी ठहराया था 96 वर्षीय दोषी हबीब अहमद खान ने अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति और उम्र को देखते हुए स्थायी पैरोल की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था आइए जानते है खबर में पूरी जानकरी विस्तार से...
 
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Supreme Court : 96 वर्षीय दोषी को रिहा करने के लिए किया समर्थन, 27 साल जेल नें रहना आजीवन कारावास के समान, जानियें वजह ?

HARYANA NEWS HUB (ब्यूरो) : सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में 1993 के ट्रेन विस्फोट मामले में आजीवन कारावास (life imprisonment) की सजा काट रहे और फिलहाल पैरोल (parole) पर चल रहे एक 96 साल के बीमार दोषी की सजा में छूट का समर्थन किया है। शीर्ष कोर्ट की न्यायमूर्ति अभय एस ओका (Justice Abhay S Oka) और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां (Justice Ujjwal Bhuiyan) की पीठ ने बम विस्फोट मामले में दोषी हबीब अहमद खान (Habib Ahmed Khan) की याचिका पर सुनवाई करते हुए

राजस्थान सरकार को मानवीय नजरिए से देखने का निर्देश दिया 96 वर्षीय एक दोषी की सजा में छूट का समर्थन करते हुए सोमवार को कहा कि लगातार कैद में रखना ‘‘मृत्युदंड के समान’’ है। हबीब अहमद खान ने अपना स्वास्थ्य बिगड़ने और वृद्धावस्था का हवाला देते हुए स्थायी पैरोल देने के अनुरोध के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया था आइए जानते है इससे जुड़ी और अधिक जानकारी न्यूज़ में...

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न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने राजस्थान सरकार से उनके मामले पर मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से विचार करने को कहा। खान के वकील ने कहा कि वह 27 साल से अधिक समय जेल में रहा, जिसके बाद उसे तीन बार पैरोल दी गई। तीसरी पैरोल अब इस न्यायालय द्वारा समय-समय पर विस्तारित की जा रही है। पीठ ने खान की मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन किया और राजस्थान सरकार से पूछा कि इस समय उसे जेल में रखने से किस उद्देश्य की पूर्ति होगी।

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'निरंतर कारावास में रहना मृत्युदंड के समान'
पीठ ने राज्य सरकार की ओर से न्यायालय में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी (Solicitor General Vikramjit Banerjee) से कहा, ‘‘जरा उसकी मेडिकल रिपोर्ट देखिए, वह कहां जाएगा। हां, उसे आतंकी कृत्य के लिए दोषी ठहराया गया था लेकिन उसे मौत की सजा नहीं सुनाई गई थी। निरंतर कारावास में रहना उसके लिए मृत्युदंड के समान है।’’

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पीठ ने बनर्जी से उसकी सजा में छूट पर विचार करने और मामले पर मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से विचार करने को कहा। न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि 96 साल की उम्र में खान सिर्फ अपने (जीवन के शेष) दिन गिन रहा है और कानून इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता। पीठ ने बनर्जी को राज्य सरकार से इस बारे में निर्देश लेने को कहा कि क्या खान को सजा में छूट या स्थायी पैरोल दी जा सकती है और विषय को दो सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

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1993 के ट्रेन विस्फोट मामले में हुआ था गिरफ्तार :
खान को 1993 में हुए सिलसिलेवार ट्रेन विस्फोटों के सिलसिले में 1994 में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद, 2004 में अजमेर की एक अदालत ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत उसे एवं 14 अन्य को दोषी करार दिया था। शीर्ष अदालत ने खान की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को 2016 में बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत द्वारा 2021 में पैरोल दिए जाने से पहले खान जयपुर जेल में बंद था।