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Lok Sabha Election 2024 : जानें `अबकी बार 400 पार' का नारा क्यों दिया भाजपा ने, क्या है वजह? ​​​​​​​

Lok Sabha Election 2024 : बता दें कि देश के लगभग बहुत राज्यों में बीजेपी ने बहुत अधिक सीटें जितने वाली `अबकी बार 400 पार' का टारगेट पूरा कर लिया है, संदेशखाली का मुद्दा देशभर में गर्मा गया है। इसके बाद कहा जा रहा है, कि भाजपा यदि बंगाल की कुल 42 में से 32-33 सीटें भी जीत ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए,लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी ने एनडीए के लिए ‘अबकी बार, 400 पार’ का नारा दिया है। यहीं भाजपा के लिए भी 370 सीट का लक्ष्य रखा गया है आइए जानते है खबर में पूरी जानकारी विस्तार से-

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Lok Sabha Election 2024 : जानें `अबकी बार 400 पार' का नारा क्यों दिया भाजपा ने, क्या है वजह?

HR NEWS HUB : भाजपा ने इसकी तैयारी पूरी कर ली है। भाजपा ने अपना पूरा फोकस वहां लगा दिया है, जहां पिछले लोकसभा चुनावों में कुछ कसर बाकी रह गई थी। मतलब पिछले प्रदर्शन के आधार पर विपक्षी खेमा भाजपा के लिए जिन राज्यों को ‘आपदा’ बता रहा है, भाजपा के रणनीतिकार वहीं सीटें बढ़ाए जाने की गुंजाइश को ‘अवसर’ के रूप में देख रहे हैं आइए जानते है नीचे खबर में,.....

नई संभावनाओं वाले राज्यों में जिस तरह के राजनीतिक व सामाजिक समीकरण बिठाने के प्रयास किए जा रहे हैं, उनके भरोसे भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश, बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु में पार्टी इस बार बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। केरल में भी नए समीकरणों के साथ भाजपा खाता खोलने की उम्मीद कर रही है। 

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उत्तर प्रदेश में 71 अकेले और दो सहयोगियों के साथ कुल 73 सीटें जीतकर भाजपा ने 2014 में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद भाजपा अपने सहयोगी अपना दल (एस) के साथ 64 सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन पिछले मुकालबे की तुलना में नौ सीटें कम हो गई थीं, जिन्हें बढ़ाने के जतन चल रहे हैं। 

राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के साथ आने से पश्चिम व पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई सीटों के समीकरण भाजपा अपने पक्ष में मजबूत होते देख रही है। भाजपा के रणनीतिकार सहयोगियों के साथ इस बार 80 में से 75 से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं। इस बार बसपा ने एकला चलो का नारा दिया है। 

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2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-सपा का गठबंधन देख चुकी भाजपा इस गठजोड़ को कोई चुनौती मानकर नहीं चल रही है। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की ओर से बंगाल की सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने से साफ हो गया है कि इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा-टीएमसी में होगा।

यदि माकपा और कांग्रेस का गठबंधन पिछली बार की तरह बना तो कुछ सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है, पर संदेशखाली की घटना के बाद भाजपा के आक्रामक तेवर ने टीएमसी के खिलाफ माकपा व कांग्रेस के लिए ज्यादा जमीन छोड़ी नहीं है। यहां पिछली बार भाजपा को 18 और टीएमसी को 22 सीटें मिली थीं। कांग्रेस दो सीटों पर सिमट गई थी। 

भाजपा पहले से यहां 33 सीटों पर मजबूती से लड़ने और उनमें 25 से अधिक सीटें जीतने की रणनीति पर काम कर रही थी,पर संदेशखाली की घटना के बाद बदले माहौल को देखते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार का मानना है कि इस बार भाजपा यदि 32-33 सीटें भी जीत ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 

ओडिशा में बीजद से तालमेल, तेलंगाना में बीआरएस का ढलान-
ओडिशा में भले ही सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी हो, पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने साफ किया कि किसी ना किसी रूप में बीजद और भाजपा का साथ आना तय है। लोकसभा की 21 सीटों वाले ओडिशा में भाजपा के पास अभी आठ, बीजद के पास 12 और कांग्रेस के पास एक सीट है।

यदि बीजद और भाजपा साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो सभी 21 सीटें राजग के खाते में आ सकती हैं। इसी तरह से तेलंगाना में विस चुनाव में हार के बाद बीआरएस का ग्राफ तेजी से गिर रहा है और मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच होने की उम्मीद है। बीआरएस के दो सांसद भाजपा में आ चुके हैं और पार्टी ने उन्हें टिकट भी दे दिया है। 

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पार्टी सूत्रों का दावा है कि बीआरएस के चार-पांच और सांसद संपर्क कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा चार, कांग्रेस तीन और बीआरएस 10 सीटें जीती थी। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि बीआरएस की काफी कम सीटें आएंगी, वहीं कांग्रेस व भाजपा की सीटों में बढ़ोतरी होगी। नई परिस्थितियों में भाजपा अपने दम पर तेलंगाना में आठ से 10 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। 

आंध्रप्रदेश में तेदेपा का साथ, तमिलनाडु से मोदी ने जोड़े तार-
2019 में तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) राजग से बाहर थी और लोकसभा की 25 सीटों वाले आंध्रप्रदेश में भाजपा खाता तक खोलने में विफल रही थी। इस बर तेदेपा राजग में आ चुकी है और भाजपा को छह सीटें गठबंधन में मिल रही हैं।

पिछली बार अकेले दम पर तेदेपा तीन सीट ही जीत पाई थी। इस बार राजग गठबंधन से वाइएसआर कांग्रेस को तगड़ी चुनौती मिलने की उम्मीद है। भाजपा यहां गठबंधन के सहयोगियों के साथ 15 से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है।

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आंध्रप्रदेश की तरह भाजपा 2019 में तमिलनाडु और केरल में भी खाता खोलने में विफल रही थी। तमिलनाडु में 39 में से 38 सीटें द्रमुक और कांग्रेस के साथ उनके सहयोगियों को मिली थीं, जबकि 2014 में इसके ठीक उल्टा परिणाम आया था। तब भाजपा और एआइएडीएमके का गठबंधन सभी 39 सीटें जीतने में सफल रहा था।

तमिलनाडु की पुरानी परंपरा को देखते हुए इस बार एआइएडीएमके गठबंधन को ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद की जा रही थी, पर एआइएडीएमके ने राजग से नाता तोड़ लिया है। जयललिता और के. करुणानिधि जैसे नेताओं के अभाव में होने जा रहे इस चुनाव में जमीनी मुद्दे हावी रहने की उम्मीद है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तमिलनाडु के लोगों के साथ दिल के तार जोड़ने और तमिल संस्कृति व विरासत को सहेजने की कोशिशों के साथ ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अन्ना मलाई के जमीनी स्तर किए गए कामों को देखते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता तमिलनाडु से चौंकाने वाले नतीजे आने का दावा कर रहे हैं।

एआइएडीएमके पेन्निरसेल्वम गुट के साथ भाजपा समझौता करने की कोशिश कर रही है। तमिल मनीला कांग्रेस राजग में शामिल हो चुकी है।