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पति ने बीवी को गैर मर्द के साथ रंगे हाथों पकड़ा, पत्नी बोली ये मेरा अधिकार है, फिर बताया ये कानून

extramarital affair : शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है जिसकी बुनियाद भरोसे पर टिकी होती है। अगर भरोसा टूट जाता है तो ये रिश्ता भी टूट जाता है। इस मामले में एक पति अपनी पत्नी को गैर मर्द के साथ रंगे हाथों पकड़ लेता है। तो आगे से पत्नी का जवाब आता है कि "ये मेरा अधिकार है" आइए नीचे आर्टिकल में जानते है उस महिला ने कौन से कानून के बारे में बताया।

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पति ने बीवी को गैर मर्द के साथ पकड़ा रंगे हाथों, पत्नी बोली ये मेरा अधिकार है और बताया फिर बताया ये कानून

HARYANA NEWS HUB : अगर कोई शादी से बाहर शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे नैतिक रूप से ठीक नहीं माना जाता। लेकिन कानून क्या कहता है? भीलवाड़ा के शख्स ने खुदकुशी से पहले अपनी पत्नी पर जो आरोप लगाया वह अडल्टरी यानी व्यभिचार की श्रेणी में आता है। पहले यह आपराधिक था। इसके लिए इंडियन पेनल कोड में एक धारा 497 थी। लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट( Supreme Court ) ने अडल्टरी यानी व्यभिचार को गैरआपराधिक घोषित कर दिया।

यानी अब विवाहेत्तर संबंध आपराधिक नहीं है। अब राजस्थान में पति की खुदकुशी के मामले को देखते हैं। गैरमर्द के साथ कथित तौर पर रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद पत्नी ने कहा कि उसकी मर्जी, कानून भी उसका कुछ नहीं कर सकता। यह बात बहुत हद तक सच भी हैं। लेकिन अडल्टरी आपराधिक नहीं है तो क्या तलाक का आधार जरूर है। अगर जीवनसाथी (पति या पत्नी) का शादी से बाहर जिस्मानी संबंध है तो यह तलाक का एक मजबूत आधार हो सकता है।

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ऐसे ही मामलों के लिए था आईपीसी की धारा 497 :


अडल्टरी शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'Adulterium' से बना है जिसका मतलब है एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर। यानी किसी शादीशुदा शख्स का पति/पत्नी से इतर किसी अन्य से जिस्मानी संबंध। इसे सामाजिक और नैतिक तौर पर गलत माना जाता है। 2018 से पहले ये कानूनी तौर पर भी गलत था, आपराधिक था। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड की धारा 497 अडल्टरी से ही जुड़ी थी।

इसके तहत किसी शादीशुदा महिला से उसके पति की सहमति या मिलीभगत के बिना शारीरिक संबंध बनाना अडल्टरी था जो आपराधिक था। अडल्टरी के दोषी पुरुष को अधिकतम 5 साल तक की कैद, जुर्माना या फिर दोनों सजा का प्रावधान था। अगर किसी महिला का एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर हो तो भी धारा 497 के तहत उसे सजा नहीं हो सकती थी।

वजह यह कि कानून के तहत सिर्फ पुरुष को अपराधी माना गया, महिला को नहीं। उसके प्रेमी को ही सजा हो सकती थी। कानून की एक और खामी यह थी कि अगर किसी महिला का पति विवाहेतर संबंध में शामिल है तब भी वह महिला उसके खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकती। शिकायत हमेशा कथित पीड़ित पुरुष ही दर्ज करा सकता था और कार्रवाई भी सिर्फ शादीशुदा महिला के प्रेमी के खिलाफ हो सकती थी, अडल्टरी में शामिल महिला के खिलाफ नहीं।

जब सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी को गैरआपराधिक घोषित किया :

दरअसल, 10 अक्टूबर 2017 को इटली में रह रहे केरल के एक एनआरआई जोसफ शाइन ने आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिकता को यह कहकर चुनौती दी कि ये धारा पुरुषों से भेदभाव करने वाली है। 27 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने आईपीसीकी धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 (2) को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह प्रावधान महिला को पति की संपत्ति के रूप में पेश करता है। इससे एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है और उसकी सेक्शुअल चॉइस को रोका जाता है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब यह कहने का वक्त आ गया है कि पति महिला का मालिक नहीं होता। पत्नी पति की जागीर नहीं है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी को गैरआपराधिक घोषित कर दिया।

दो बालिगों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध में कोई गुनाह नहीं :

अगर दो शख्स बालिग हैं और सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं तो इसमें किसी तरह का कोई अपराध नहीं है। समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद तो अब किसी महिला का किसी दूसरी महिला से या किसी पुरुष का किसी दूसरे पुरुष से जिस्मानी संबंध भी अपराध नहीं रह गया है। सामान्य शब्दों में कहें तो दो व्यक्ति अगर बालिग हैं यानी 18 वर्ष से ऊपर के हैं और उनके बीच आपसी सहमति से जिस्मानी ताल्लुकात हैं तो यह अपराध नहीं है। भले ही दोनों शख्स शादीशुदा हों, उनमें से कोई एक शादीशुदा हो या दोनों अविवाहित हों।

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पति या पत्नी अडल्टरी में शामिल हो तब क्या करें?

राजस्थान वाले मामले को देखें तो आरोपी पत्नी के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का केस दर्ज हो सकता है। खुदकुशी करने वाला शख्स एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर के लिए भले ही अपनी पत्नी के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं करा सकता था लेकिन वह इसके आधार पर उससे तलाक लेकर मानसिक यातनाओं से भरे इस रिश्ते से छुटकारा पा सकता था। 2018 में अडल्टरी को गैरआपराधिक घोषित करने वाले अपने ऐतिहासिक फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसे तलाक का आधार माना।

हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 की धारा 13 (1) के तहत अगर कोई शादीशुदा शख्स (महिला या पुरुष) का अपने जीवनसाथी से इतर किसी शख्स से जिस्मानी रिश्ते हैं तो यह तलाक का तार्किक आधार होगा। हिंदू पुरुष के साथ-साथ महिला भी इस आधार पर तलाक की मांग कर सकती है कि उसका पार्टनर एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर में शामिल है। मुस्लिम मैरिज ऐक्ट 1939 के तहत भी अडल्टरी तलाक का आधार है। संबंधित महिला या पुरुष इस आधार पर तलाक मांग सकता है।

ऐसे मामलों में अडल्टरी को साबित करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके आधार पर तलाक मांग रहे शख्स को साबित करना पड़ता है कि उसके जीवनसाथी का एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर है। इस तरह के मामले में आरोप लगाने वाले पुरुष या महिला को इस बात के सबूत देने होते हैं कि उसकी पत्नी या उसका पति अडल्टरी में शामिल हैं। बर्डन ऑफ प्रूफ आरोप लगाने वाले पर होता है।