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क्या सास ससुर मिलकर बहू को निकाल सकते है घर से बाहर, जाने High Court का फैसला

High Court Decision : आप सभी को पता ही है कि सास बहू का रिश्ता ऐसा ही होता कि इनमें कुछ ना कुछ अनबन होती ही रहती है। ये कहानी लगभग सभी घरों की होती है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बुजुर्गो के पास कुछ ऐसे अधिकार होती है कि अगर बहू अपने सास ससुर को परेशान करती है या तंग करती है सास ससुर बहू को घर से बाहर निकाल सकते है। ऐसे में आइए नीचे आर्टिकल में जानते है इस अपडेट के बारे में डिटेल से।

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क्या सास ससुर मिलकर बहू को निकाल सकते है घर से बाहर, जाने High Court का फैसला

HR NEWS HUB (ब्यूरो) : बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) ने एक टिप्पणी में कहा कि किसी महिला को केवल उसके बुजुर्ग ससुराल वालों की मानसिक शांति बनाए रखने के लिए उसके वैवाहिक घर से बेदखल या बेघर नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों(senior citizens) के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत भरण-पोषण न्यायाधिकरण(Maintenance Tribunal constituted) द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी।

महिला ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि पति द्वारा अपने माता-पिता की मिलीभगत से उसे घर से बाहर निकालने के लिए मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल का दुरुपयोग किया जा रहा है। पीठ ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ नागरिक मन की शांति के साथ जीने के हकदार हैं, लेकिन वे अपने अधिकारों का इस्तेमाल इस तरह से नहीं कर सकते हैं जिससे घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत किसी महिला के अधिकार खत्म हो जाएं। 

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अदालत ने मामले में प्रकाश डालते हुए कहा, 'इसमें कोई संदेह नहीं है कि वरिष्ठ नागरिक अपने घर में शांति के साथ, बहू और उसके पति के बीच वैवाहिक कलह के कारण बिना किसी परेशानी के रहने के हकदार हैं। लेकिन साथ ही, वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत मशीनरी का उपयोग घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 17 के तहत किसी महिला के अधिकार को पराजित करने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता है'। 

जानें वह पूरा मामला जिसमें बॉम्बे HC ने की टिप्पणी :

दरअसल, याचिकाकर्ता और उसके पति ने 1997 में शादी की थी और उस घर में रह रहे थे जो सास के नाम पर था। पति-पत्नी के बीच कुछ वैवाहिक कलह के बीच, मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल ने 2023 में एक आदेश पारित कर कपल को फ्लैट खाली करने का निर्देश दिया।

हालांकि, याचिकाकर्ता के पति ने घर खाली नहीं किया और मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती भी नहीं दी। उसने अपने माता-पिता के साथ रहना जारी रखा। इससे न्यायालय को यह विश्वास हो गया कि महिला के ससुराल वालों द्वारा शुरू की गई बेदखली की कार्यवाही केवल उसे घर से बाहर निकालने की एक चाल थी।

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कोर्ट ने कहा, 'उसके पास रहने के लिए कोई अन्य जगह नहीं है। इसलिए, वरिष्ठ नागरिकों की मानसिक शांति सुनिश्चित करने के लिए उसे बेघर नहीं किया जा सकता है'। उच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के बेदखली आदेश को रद्द कर दिया और यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता-महिला द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साझा निवास में रहने के अधिकार के लिए दायर याचिका अभी भी एक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित थी। इसलिए, उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट को महिला की याचिका पर शीघ्रता से निपटारा करने का भी आदेश दिया।